Articles

सोशल डिस्टैन्सिंग नहीं, फिजिकल डिस्टैन्सिंग करो ना !

कम से कम  1.5मीटर की दूरी और फेस मास्क बहुत जरुरी  ! Physical distancing/फिजिकल डिस्टैन्सिंग
फिजिकल डिस्टैन्सिंग (कम से कम  1.5मीटर की दूरी )और फेस मास्क बहुत जरुरी ! इमेज सोर्स – Pixabay

कुछ दिनों पहले शाम को चाय पीते समय मौसेरे भाई का कॉल आया | हाल चाल पूछने के बाद बात कोरोना और लॉक डाउन पर आ टिकी। बताने लगा की कैसे कुछ रोज़ पहले उसके एक रिश्तेदार का एक्सीडेंट हुआ और गहरी चोटे आई , लेकिन लॉक डाउन की वज़ह  से डॉक्टर को दिखवाने में बहुत दिक्कते हुई | इसमें नया कुछ नहीं लगा अब ये बातें आम सी लगने लगी हैं | मन सोचने पर तब मजबूर हुआ जब उसने बताया कि कैसे वो युवक सड़क पर बहुत देर तक पड़ा रहा , उसका बहुत खून बहा और सर पर भी गहरी चोट आई लेकिन कोई आगे बढ़कर उसको देखने नहीं आया | भगवन का शुक्र है की दो युवा लड़कों  ने समझदारी दिखाकर उसको हॉस्पिटल के सामने तक पहुँचाया और उसकी जान बची | कोरोना को लेकर इतना भय हमारे अंदर भर चूका है की कहीं न कहीं इंसानियत का वजूद खतरे में है | फिजिकल डिस्टैन्सिंग की जगह सोशल डिस्टैन्सिंग बढ़ती जा रही है !

Broken window Sun setting down. Blog gauravsinhawrites.in फिजिकल डिस्टैन्सिंग
इतिहास हमारा सबसे बड़ा शिक्षक है पर हम सीखना ही नहीं चाहते ! इमेज सोर्स – Pixabay

देश यूँ भी एक मुश्किल दौर से गुज़र रहा है, कुछ ही महीनों पहले जहाँ कोरोना दस्तक दे रहा था | देश का “दिल और धड़कन”  कहा जाने वाला शहर यानि दिल्ली सांप्रदायिक पागलपन का शिकार हुआ था |  उम्मीद है दोषियों  को वक़्त से सजा और लोगो को भी कुछ समझ मिलेगी कि किस तरह बात का बतंगड़ हो जाता है अगर संयम से काम न लिया जाये |  

Crowd gathered and cheering फिजिकल डिस्टैन्सिंग not followed in religious gatherings.
हर धर्म के लोग खुद को और अपने परिवार को खतरे में डाल  कर भीड़ करने के गुनहगार है ! इमेज सोर्स – Pixabay

अब जब दुकानों के बाहर धरम “बोल्ड” में लिखा दिखताहै तो समझ नहीं आता रोना अच्छा, हंसना अच्छा, या फिर कोरोना ही अच्छा |

देश में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगा और 24 मार्च से पुरे देश में लॉक डाउन  शुरू हुआ ताकि कोरोना वायरस महामारी से लड़ा जा सके | कुछ समय के लिए लगा की चलो जिस तरह क्रिकेट मैच देश को जोड़ दिया करता था, उसी तरह ये कोरोना भी शायद कुछ कमाल कर दे | शायद हम में से बहुत लोगों ने कुछ ज़्यादा ही अपेक्षा कर ली थी | जल्द ही कोरोना की बजाय हमेशा की तरह हम आपस में लड़ते नज़र आये | कभी खबर आई कि किसी एक धर्म के सब्ज़ी और फल बेचने वालो को परेशान किया जा रहा है | ऐसा नहीं है की सिर्फ न्यूज़ में ही ऐसा है | हम सभी ने अपने आस पास ये महसूस किया होगा | अफवाहों ने मीट और पोल्ट्री व्यापार पे भी प्रहार किया ही था | ये नफरत इसको 4 कदम आगे ले आई | अब जब दुकानों के बहार धरम “बोल्ड” में लिखा दिखताहै तो समझ नहीं आता रोना अच्छा, हंसना अच्छा, या फिर कोरोना ही अच्छा |

Helping Hands, Blog post at gauravsinhawrites.in
इस समय हमारा सबसे बड़ा धर्म, मदद का हाथ बढ़ाना है  ! इमेज सोर्स – Pixabay

ऐसा नहीं की सब कुछ बुरा है बहुत से अच्छे काम हो रहे हैं | बहुत से लोगों ने अपनी जमा पूंजी अनजान भूख से बेहाल मजबूरों को खाना खिलाकर ख़तम कर दी, तो बहुत से गुरुद्वारों में लंगर बांटे गए सिर्फ देश ही नहीं विदेशों से भी खबरे सुनने में आयी और सुनकर इंसानियत पे भरोसा कायम होता रहा | 


गंगटोक, सिक्किम  2019  Gaurav Sinha Blog

गंगटोक, सिक्किम 2019 

आप में से जो कोई भी नार्थ ईस्ट गया है , वो ये जरूर मानेगा कि वहां के लोग मिलनसार, पढ़े लिखे, सभ्य और शांति पसंद हैं | पिछले साल मेरा सिक्किम जाना हुआ और मुझे ये ताज़्ज़ुब हुआ कि क्या ये भारत ही है ? फिर चाहे वो सफाई का जज़्बा हो, कायदा क़ानून मानने की आदत , फर्राटे दार इंग्लिश, लड़कियों और महिलाओं का आधुनिक पहनावा और बेजिझक काम करना, पहाड़ी रास्तों पर  बिना किसी डर के स्कूल जाते बच्चे | सबसे बड़ी बात सबके चेहरे पर एक बेबाक हंसी | ऐसा नहीं की वहां दिक्कते नहीं, पर कुछ अलग लगा | अगर आप उत्तर भारत में रहते हैं तो एक बार जरूर नार्थ ईस्ट घूम कर आइये लॉक डाउन के ख़तम होते ही | आपको फर्क समझ आएगा | कोशिश कीजिये थोड़ा अपने शहर से बाहर निकलकर पुरे भारत को जानने की, पहचाने की, फिलहाल तस्वीरों से काम चला लेते हैं | 

नार्थ ईस्ट के बारे में जब बात हो ही रही है तो, थोड़ी कड़वी बातें भी कर लेते हैं | कुछ बहुत ही बुरे प्रसंग हुए जैसे की नार्थ ईस्ट के एक नागरिक को “कोरोना” कहना, उनपर थूक देना | ऐसा नहीं है की भारत ही नस्लभेद रंगभेद  और जातिवाद जैसी बकवास मानसिकताओं का शिकार है , ये हर जगह है | दुःख की बात है की ऐसे वक़्त में जब हम सदी के सबसे मुश्किल समय में हैं हम खुद अपने अंदर से नफरत को नहीं निकाल पा रहे | 

Original Song on the theme of national integration. Produced by Lok Sewa Sanchar Parishad. It is released by Doordarshan (National Broadcaster) on 15th August 1988.

जिन लोगों ने  80 और 90 दशक  दूरदर्शन देखा है | उन्हें ये लाइने याद होंगी “हिन्द देश के निवासी सभी जन एक हैं, रंग रूप वेश भाषा चाहे अनेक हैं”  या फिर “मिले सुर मेरा तुम्हारा ” | थोड़ा वक़्त निकलकर यूट्यूब पर खुद भी देखिये और बच्चों को भी दिखाइए | वक़्त आ गया है थोड़ा पीछे कदम रखकर फिर एक नई  शुरुवात करने का | 

https://youtu.be/EG9SCBd16lI

कोरोना से जब को सेलिब्रिटी या नेता ग्रसित होता है तो हम सोशल मीडिया और न्यूज़ पे बड़ी बड़ी बातें सुनते हैं वहीँ अगर अपने पड़ोस में कोई कोरोना पॉजिटिव आ जाये तो उससे नफरत करने लगते हैं | हम सब में सबसे ज्यादा आधुनिक शायद कोरोना वायरस है जो बिना किसी भेद भाव के सबके साथ एक सा व्यवहार कर रहा है | कटाक्ष है , समझिये और थोड़ा सोचिये | अगर पसंद आये तो बात को आगे बढ़ाइए हिन्द देश के निवासिओं !

अगर आपको कटाक्ष पसंद है तो ये आर्टिकल भी जरूर पढ़ें !

  “सोशल डिस्टैन्सिंग तो सदियों से करते आये, वक़्त फिजिकल डिस्टैन्सिंग का है, करो ना !” – गौरव सिन्हा 

सोर्स

Share
Scroll Up