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क्या आप एपोलिटिकल हैं ? [The Politics of Being Apolitical]

Poster defining meaning of being apolitical, in other words its being privileged and unaffected, so there is no need to interfere in politics क्या आप एपोलिटिकल हैं?  Hindi blog post by Gaurav Sinha

आजकल एक बड़ा पॉपुलर शब्द है हमारी डिक्शनरी में एपोलिटिकल। जब कोई बात समाज या देश की राजनीति की दिशा में जाने लगे। लोग फटाफट खुद को राजनीति से अलग करार देते हैं। भाई हमें नहीं पता ज्यादा कुछ, और न जानना चाहते हैं। बात ठीक भी है, जब सब कुशल मंगल चल रहा है क्यों फालतू के पचड़ों में पड़ना।

अब आते हैं राजनीति की तरफ, राजनीति कहाँ नहीं? रिश्तों में है, काम में है, हाउसिंग सोसाइटिस में है, सड़क किनारे लगे चाय के स्टाल में है, ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले ऐप्स में है। मोटा मोटी कोई भी बात जो हमारे जीवन पर प्रभाव डालती है वो राजनीति से जुड़ी हैं। तो आप जितना मर्जी एपोलिटिकल हो जाएं पॉलिटिक्स आपके साथ 24/7 रहेगी।

क्या एपोलोटिकल होना गलत है? बिलकुल नहीं, इसका एक मतलब होता है कि आपको किसी पार्टी से कोई लगाव नहीं। मतलब आप न्यूट्रल हैं। जो बहुत बढ़िया बात है, आप निष्पक्ष सोच सकते हैं। होना भी ऐसा ही चाहिए , पर दिक्कत ये है कि खुद को एपोलोटिकल घोषित करने वाले ज्यादातर ऐसे नहीं हैं। जब उनकी विचारधारा वाली पार्टी या लीडर ने कुछ गडबड की हो तो तब वो मौन होकर एपोलिटिकल हो जाते हैं। वरना खूब एंजॉय करते हैं।

एपोलिटिकल होने का जो गर्व है, एक और बात पर भी निर्भर करता है, कि आप कितने प्रिविलेजेड हैं। मतलब कोई कानून या निर्णय आपको प्रभावित नहीं करेगा, तो क्यों टेंशन लें। हम जन्म लेते हैं तो हॉस्पिटल में रजिस्ट्रेशन, फीस, इत्यादि सब सरकार की नीतियों से निर्धारित होता है।

बच्चे जब स्कूल जाते हैं, तो डोनेशन, फीस, पढ़ाई, सब सरकार के नियम के हिसाब से। नौकरी, प्राइवेट हो या सरकारी, छोटे से छोटा या बड़े से बड़ा व्यापार। जिस घर में रहते हैं उसको बनाने से लेकर तोड़ने, सबके लिए नियम, कानून, टैक्स हैं ही।

पढ़ लिख लिया, कमाई का साधन हो गया। आगे आप शादी करें या तलाक लें। उसके भी नियम हैं। जब कहीं घूमने जाते हैं तो टिकट से लेकर बाकी सारे ख़र्च, सड़क और ट्रेन का हाल, सुरक्षा सब कुछ सरकार की नीतियों के हिसाब से। फिर जब एक दिन ऊपर जाने का समय आता तो क्रिया कर्म में भी टैक्स देते हुए जाते हैं।

आप कह सकते हैं क्या खाएं उसपर नहीं है रोक टोक। पर अब जब हम इतने एपोलिटिकल हैं तो उसपर भी कुछ आ जाये तो क्या बुरी बात। पीने पर तो है ही। जहाँ रोक है वहीं सबसे ज़्यादा ख़पत। याद आया कुछ दिन पहले ही फ़ूड डिलीवरी वालों को निर्देश गया था, इन दिनों में नॉन वेज न डिलीवर करें। तो वहां भी शुरुवात हो ही गई।

मगर इन सबसे हमें क्या, हम तो एपोलिटिकल हैं। वोट दे देते हैं उससे ज़्यादा पोलिटिकस नहीं आती। तो सोचने वाली बात है क्या हम सच में एपोलिटिकल हैं?

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