ये हो ही नहीं सकता। भगवान भी अगर मेरे सामने आकर मुझे कहे तब भी मुझे यकीन नहीं होगा। ऐसा होना मुमकिन ही नहीं है। मैं राकेश और राखी को तब से जानता हूँ जब वो दोनों स्कूल में थे। मेंने उन दोनों को अपनी आँखों के सामने बड़ा होते देखा है। उन दोनों ने कितना मुश्किल समय साथ बिताया है, जब उनके सभी जाननेवालों और रिशतेदारों ने उनसे मुँह फेर लिया था। तब वो दोनों एक दूसरे का सहारा ही नहीं, ताक़त भी बने।
जिस उम्र में लड़कियाँ नए सपने बुनती हैं, प्रेम गीत गुनगुनाती हैं और एक अलग दुनिया में खोई रहतीं हैं। उस उम्र में राखी ने अपने से दस साल छोटे राकेश को बहन नहीं, माँ बनकर पाला। ऐसा लगता है कल ही की बात हो, जब एक हँसता खेलता परिवार, उस कार एक्सिडेंट में पूरी तरह से बिखरते बिखरते बचा। वैसे तो सबने उस परिवार को खत्म मान ही लिया था। और एक तरह से बात सही भी थी। जब माँ बाप अपने पीछे दो मासूम बच्चों को अनाथ छोड़ जाएँ, उससे बुरी नियति क्या होगी।
अजय और संजना, दोनों ही मेरे कॉलेज के दोस्त थे, और जिस दिन कुदरत से वो घोर अन्याय हुआ दो मासूमों के साथ, मेरा भरोसा भगवान पर से उठ गया था । राखी ने तब मेट्रिक का एक्जाम दिया था, और राकेश बस पाँच साल का था, जिसने स्कूल जाना और यादें बनाना शुरू ही किया था। अजय और संजना राखी को अपनी ही तरह डॉक्टर बनते हुए देखना चाहते थे। राखी होनहार भी थी तो हम सभी को पता था कि बस समय की बात है, और हम उसे डॉक्टर का सफ़ेद कोट पहने देखेंगे।
मेट्रिक के एक्जाम के बाद राखी खुश थी, पर आगे की पढ़ाई के लिए घर से दूर जाने से पहले उसने बस एक ही मांग रखी थी। माँ बाप और छोटे भाई के साथ दो हफ्ते अपने फ़ेवरिट हिल स्टेशन, शिमला में दो हफ्ते की छुट्टियाँ। उसे पता था कि एक बार पढ़ाई शुरू हुई तो फिर उसको टाइम नहीं मिलेगा। अजय और संजना क्यूंकी खुद भी डॉक्टर थे, वो भी जानते थे पढ़ाई का बोझ कितना ज़्यादा होगा। वो भी अपनी प्यारी और उम्र से कहीं ज़्यादा समझदार बेटी के साथ जी भर कर समय बिताना चाहते थे। शिमला वो लोग हर साल जाते थे, घर से निकलते हुए उनको नहीं पता था कि वो उनकी ज़िंदगी की आखरी ट्रिप होगी अपने बच्चों के साथ। या फिर ये कहना सही होगा कि उन बच्चों कि आखरी ट्रिप अपने माँ बाप के साथ।
बदकिस्मती देखो की कार जब बीस फीट खाई में गिरी तो वो शिमला से वापस दिल्ली नहीं आ रही थी। वो शिमला की तरफ जा रही थी। यानि, उन बच्चों को वो दो हफ्ते भी नहीं मिले अपने माँ बाप के साथ, थोड़ी और यादें बनाने के लिए, जिनहे वो बाकी कि ज़िंदगी याद कर सकें। क्या बिगड़ जाता, अगर भगवान इतना ग्रेस पीरियड दे देता। कितने ही अस्सी नब्बे साल के मायूस लोग ओल्ड एज होम में पड़े हैं, जिनको कोई पूछने वाला नहीं। कितने ज़िंदगी से हारे हुए, एक एक दाने को मोहताज सड़क किनारे भगवान को कोसते हुए बस साँस ले रहे हैं।
अगर अपना कोटा ही पूरा करना था तो ऐसी दो जाने तो कितनी आसानी से मिल सकती थी, जिनके होने न होने से किसी को फरक नहीं पड़ता। फिर क्यूँ दो मासूमों के सर से माँ बाप का साया उठा देना ठीक लगा भगवान को? और अगर कोई उपाय नहीं था तो उन दोनों को भी साथ बुला लेना था, चारों एक साथ उस दुनिया में जाते। ये सब सोचकर मुझे जितना दुख हुआ था, उससे कहीं ज़्यादा गुस्सा भी छलका था । हम चाँद पर पहुँचने वाले, हवा में उड़ने वाले, नियति के आगे कितने बेबस और लाचार हैं।
हम चाँद पर पहुँचने वाले, हवा में उड़ने वाले, नियति के आगे कितने बेबस और लाचार हैं।
~ गौरव सिन्हा
अजय और संजना के जाने के बाद, रिश्तेदार गिद्ध की तरह उड़ उड़ कर आए थे। राखी ने मुझे कॉल करके कहा था कि अंकल मुझे आपके अलावा किसी पर ट्रस्ट नहीं। मुझे डॉक्टर नहीं बनना, क्यूँकि राकेश को किसी और के भरोसे नहीं रख सकते। ये सब लोग बस दिखावा कर रहे हैं। किसी को दुख नहीं है मम्मी पापा के जाने का। सब किसी तरह घर और पापा मम्मी का सब कुछ हड़प लेना चाहते हैं। मैं बस चुपचाप सुनता रहा था उस बच्ची को। उसकी बातें सुनकर लग ही नहीं रहा था, ये वही राखी है, एक पंद्रह साल की बच्ची। जिन दो हफ्तों में वो अपने माँ बाप के साथ जी भर कर जी लेना चाहती थी, उन्ही दो हफ्तों ने मानों उसे अपनी उम्र से दस साल बड़ा कर दिया हो। क्यूँकि वो अकेली नहीं थी, उसके साथ उससे ठीक दस साल छोटा राकेश था। दोनों का जन्मदिन एक ही दिन होता है।
मैंने एक दोस्त और शुभचिंतक होने के नाते, बस इतना ही किया की उन गिद्धों को वहाँ से हमेशा के लिए उड़ा दिया था। ताकि वो बच्चों और उनके आशियाने को तहस नहस न कर सकें। उसके बाद राखी ने डॉक्टर बनने का अपने माँ बाप का सपना पूरा करने की बजाय अपना बचपन, लड़कपन, और जवानी, अपने भाई के बचपन को बचाने में खो दिया। राकेश के लिए माँ-बाप, बहन-भाई, दोस्त सब राखी ही थी। मेरे बहुत समझाने के बाद भी राखी ने शादी नहीं की। हर बार यही कह कर टाल देती की राकेश सैटल हो जाए। देखते ही देखते बीस साल हो गए। जब आखरी बार मैं उन दोनों से मिला था तो, राकेश की अच्छी नौकरी थी और राखी के चेहरे पर संतुष्टि ।
अमरीका आने से पहले भी मैंने राखी को कहा था कि वो अपने बारे में सोचे, पूरी ज़िंदगी अकेले नहीं बिताई जा सकती। ऐसा नहीं कि बिताई नहीं जा सकती है, मगर नहीं बिताई जानी चाहिए… राकेश अब बड़ा और समझदार हो गया है। वो जितना कर सकती थी, उससे कहीं बढ़कर उसने किया है। अब उसे भी कोई अच्छा लाइफ पार्टनर तलाशना चाहिए। पर उसने हँसते हँसते कहा था कि अरे अभी तो मैं भाई की शादी करूँगी धूम धाम से। और आपको हर हाल में आना होगा शादी में। हालांकि राकेश ने कहा था कि अंकल आप टेंशन मत लो। अब दीदी की मनमर्ज़ी नहीं चलेगी। पर मुझे पता था कि राखी ने जैसे सब कुछ संभाला है कच्ची उम्र में। उससे वो उतनी ही ज़्यादा सख्त हो चुकी है, और करेगी वही जो वो चाहेगी।
अमरीका आने के बाद फोन पर बात होती रही और दोनों बच्चों के बारे में सुनकर मुझे तसल्ली रही, कि वो साथ जन्मदिन ही नहीं मना रहे, एक दूसरे को भी सबसे बढ़कर मानते हैं। वक़्त के साथ साथ उन दोनों भाई बहन का प्यार देखकर, मेंने भी ऊपरवाले से शिकवा शिकायत करना बंद कर दिया। मुझे लगा जो होता है अच्छा ही होता है, और कुछ सोच समझकर ही भगवान ने ऐसी अनहोनी की थी। शायद वो अनहोनी थी ही नहीं। वक़्त पर आँख मूंदकर भरोसा कर साथ चलते रहने की सबसे अच्छी बात यही है। बड़े से बड़ा और भारी से भारी दर्द भी रुई जैसा हल्का हो जाता है।
वक़्त पर आँख मूंदकर भरोसा कर साथ चलते रहने की सबसे अच्छी बात यही है। बड़े से बड़ा और भारी से भारी दर्द भी रुई जैसा हल्का हो जाता है।
~गौरव सिन्हा
जैसी मुझे उम्मीद थी, राखी ने शादी नहीं की, वो अपने काम में डूबी रही और राकेश के सपोर्ट में खड़ी रही। राकेश की शादी का बुलावा आया था, पर मेरा अमरीका से वापस फिर अपने देश न आ पाना भी शायद नियति ही थी। और जिस तरह हर साल उनके जन्मदिन और रक्षाबंधन की तस्वीर मुझे आया करती थी। उसी तरह राकेश की शादी की तस्वीरें भी मुझे मिली थी। राखी को इतना खुश मेंने शायद ही कभी देखा हो। जितना वो उन तसवीरों में दिख रही थी। वही खुशी जो पंद्रह साल की राखी के चेहरे पर थी छुट्टियों में शिमला जाने से पहले। शायद उससे भी ज़्यादा खुश थी वो। मानो उसके जीवन का मकसद पूरा हो गया हो।
शादी के बाद राकेश व्यस्त हो गया, जैसा अक्सर होता है। तो उससे बात करने का सिलसिला कम हो गया, पर राखी ने हमेशा मुझे याद रखा, वही राकेश के बारे में भी बता दिया करती थी। राकेश की नौकरी में तरक्की, बच्चों से परिवार में तरक्की, हर बात की खबर मिलती रही। अपने बारे में उसके पास कुछ बताने को कभी था ही नहीं। उसकी ज़िंदगी राकेश से राकेश तक ही सिमट कर रह गई थी। कभी कभी मुझे दुख होता, पर फोन पर उसकी खुशी की खनक सुनकर, वो दुख दुख नहीं रहता था, तसल्ली में बदल जाता था।
मैंने कई बार उससे पूछा था कि जन्मदिन और रक्षाबंधन की तस्वीरें अब क्यूँ नहीं भेजती? तो वो कहती की भेजी तो थी, आपको भूलने की बीमारी हो गई है। मेरी भी उम्र हो चली है तो, राखी मज़ाक मज़ाक में कहती थी अंकल आप को अब हमारी शक्लें भी याद नहीं। वैसे मुझे भूलने की बीमारी तो सच में है, पर राखी को कैसे भूल सकता हूँ।
अंकल, आप बात समझ नहीं रहे, क्या आपको याद है? लास्ट टाइम कब आपने राखी या राकेश से बात की? अरे बताया तो सब कुछ, राकेश से कुछ टाइम से बात नहीं हुई, वो बिज़ी रहता है। पर राखी तो सब बता देती है मुझको।
सुनिए अंकल, राखी को गए, दस साल हो चुके हैं। राकेश की शादी के बाद से ही उसमें बदलाव आने शुरू हुए। उसने ऑफिस में कोई फ़्रौड किया था जिसकी वजह से उसकी लड़ाई हुई और नौकरी छोडनी पड़ी। राखी ने उसे जितना समझाया वो उतना ही उससे दूर होता गया, और उसने अपनी बड़ी बहन से बात करना बंद कर दिया था । और तो और राखी के जाने के पाँच साल पहले से राखी बंधवानी भी बंद कर दी थी। राखी ने सब कुछ राकेश को दे दिया था, बस अपने लिए एक छोटा सा घर रखा था। पर राकेश को वो भी गंवारा नहीं हुआ। उसने राखी को लालची और न जाने कितना भला बुरा कहा। वो अंदर से टूट चुकी थी।
मैं उसे स्कूल के टाइम से जानती हूँ, उसका एक बॉय फ्रेंड भी था, जिसने उसका कई साल इंतज़ार किया, पर राखी ने उसे हर बार मना किया, क्यूँकि उसके लिए अपने भाई से बढ़कर कुछ नहीं था। और उसे लगता था कि शादी के बाद वो शायद उसका अच्छे से ध्यान नहीं रख पाएगी। ये बात मेरे अलावा उसने किसी से नहीं की। जब उसे लगा कि एक घर की वजह से राकेश उससे नफरत करने लगा है, तो उसने अपने माँ बाप की यादों से सँजोया, वो घर भी राकेश के नाम पर ट्रान्सफर किया, और खुद शिमला शिफ्ट हो गई।
मई पंद्रह, शुक्रवार के दिन वो सोई तो फिर सोई ही रही। मन से तो वो हार ही चुकी थी, साँसों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। उस दिन वो ठीक पैंतालीस साल की हुई थी और राकेश पैंतीस साल का। अब राकेश भी पैंतालीस का हो गया है।
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