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सनडे, नींद, डोरबैल और प्रीविलेजेड लाइफ।

A small girl collecting garbage in indian apartment - सनडे, नींद, डोरबैल और प्रीविलेजेड लाइफ। Hindi Blog Post By Gaurav Sinha | Hindi Satire | Indian Society | Souls Of Patna

हम लोग कितने प्रीविलेजेड हैं, ये हम आसानी से नहीं समझ सकते। क्योंकि इंसानी फितरत है ही ऐसी कि दुखों, कमियों और गलत चीजों पर हमारा फोकस बिना बनाए बन जाता है। पर कभी कभी कुछ चीज़ें अचानक आँखों के सामने घटती हैं और हमारे मन मस्तिष्क को झकझोर देती हैं। ठीक वैसे ही जैसे कुछ फिल्में और कहानियाँ आपको सीधा सीधा ज्ञान न देकर नैचुरल तरीके से कड़वी सच्चाई का घूट थमा जाती है। साथ में एक छोटी सी वैधानिक चेतावनी वाली पर्ची भी, कि देख लो अपनी सुविधानुसार समझ लो या चुपके से इग्नोर करके मस्त लाइफ जीते रहो।

सनडे का दिन सबको प्यारा होता है। इस दिन काम करना ऐसा मानो तेज़ भूख लगी हो और सामने वो सब्जी जो आपको सबसे नापसंद हो । सुविधा के लिए टिंडे की सब्जी को एगज़ाम्पल बना देते हैं, बशर्ते टिंडे प्रेमी ये पढ़कर इस पोस्ट को बोयकोट करने का ट्रेंड न चला दें “आई लव टिंडे की सब्जी” हैशटेग के साथ। पर हम  प्रिवेलेजेड हैं। सनडे हमारे लिए सनडे है, थोड़ी देर से उठा जा सकता है। तो शनिवार की रात देर रात गप्प मारने के बाद रविवार सुबह हम सभी नींद की गहराइयों में गोते लगा रहे थे। प्लान था कि दस से पहले उठ गए तो उसे गुनाह माना जाए।

अचानक नींद में ही डोरबैल की तेज़ आवाज़ गूँजी, पहले लगा सपना ही है। पर ऐसा था नहीं, सनडे सुबह तकरीबन आठ बजे, घर के बाहर कोई था। बंद आँखों में ही ज़ोमबी वाली हालत में मैंने दरवाजा खोला। देखा  एक लड़की, बाहर रखा कचरा एक बड़े डब्बे में उठा रही थी। उसकी उम्र स्कूल जाने की रही होगी। शायद जाती भी हो पर सनडे था तो हो सकता है अपनी मम्मी या रिश्तेदार जो भी हो, की जगह ये इंट्रेस्टिंग काम करने आई हो। उसे कितना मज़ा आ रहा होगा, हर घर के सामने रखा, गीला और सूखा कूड़ा सावधानी से बटोरते हुए। 

उसको देखते ही मेरा नींद टूटने का जो गुस्सा था वो ठीक वैसे ही गुम हुआ, जैसे वोट मिल जाने पर ज़्यादातर नेता गुम हो जाते हैं। उस लड़की ने पूछा कचरा ? और मैंने इशारा करते हुए बता दिया कि वो जो डस्ट्बिन में रखा है बस वही है। बोलना चाहा कि बैल न बजाए, हम लोग बाहर ही रख देते हैं कूड़ा, और वो भी गीला सूखा अलग अलग छाँट कर। स्वच्छ भारत में इतना योगदान तो जागरूक नागरिक दे ही सकता है। पर शायद नींद की वजह से या पता नहीं किस वजह से चुपचाप दरवाजा बंद किया और फिर बिस्तर पर आकर लेट गया। कुछ पलों तक उस बच्ची की तस्वीर मन में उभरती रही।

हमारी ज़िंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा उसी समय तय हो जाता है जब हम जन्म लेते हैं। और कमाल की बात है कि उसपर हमारा कोई बस नहीं। फिर भी हम ऐसे फील करते हैं कि हम से कमाल का इंसान तो दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। एक ठीक ठीक परिवार में जन्म लेना, जहाँ आपकी पढ़ाई लिखाई हो सके, आपको बचपन जीने का हक़ मिल जाए, उससे बड़ा प्रीविलेज शायद और कुछ नहीं। अगर आप ये पढ़ रहे हैं तो आप उसी कैटेगरी में आते हैं। ठीक उसी तरह जैसे ये पंक्तियाँ लिखने वाला। मगर हमारी लाइफ में कितने भयानक गम हैं, ये तो सिर्फ हम ही जानते हैं।

कुछ पल ऐसे ही कुछ विचारों के बाद मुझे फिर नींद आ गई और सनडे का मज़ा कायम रहा। दिन ख़त्म होने से पहले जब फिर से कूड़ा बाहर रखा, तो फिर वो सुबह वाली डोरबैल याद आई। क्या कल फिर नींद खराब होगी? बोल देना चाहिए था कि बैल बजाने की जरूरत नहीं। कल तो सोमवार है, स्कूल खुले होंगे। शायद एक दिन के लिए मजबूरी में भेजा गया हो उसे। ये लेखक नाम के प्राणी बिना मतलब खुद को संवेदना में डूबा हुआ दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। बस लिखने को कुछ मिल जाये। मतलब तो वाह वाही से ही है। जैसे टीवी न्यूज़ वालों को टीआरपी से। बेचारे न्यूज़ एंकरस खामखा ही बदनाम हैं। वो कम से कम पॉज़िटिव खबरें तो दिखाते हैं, जाने कितनी नेगेटिव खबरें छुपा कर ताकि हमारा वीकेंड खराब न हो। उनका दर्द हम क्या जाने, हमें अपनी प्रिवेलेज नज़र ही कहाँ आती है।

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