प्रकृति का स्वभाव और इंसान की प्रकृति

प्रकृति का स्वभाव और इंसान की प्रकृति !

प्रकृति का स्वभाव और इंसान की प्रकृति ! हिन्दी ब्लोगपोस्ट गौरव सिन्हा , world earth day 2025

Photo by Imad Clicks
Srinagar India – Photo by Imad Clicks

अपने देश में अप्रैल का महीना बड़ा महत्वपूर्ण होता है। एक तो नया वित्तीय वर्ष यानि फ़ाइनेंष्यल इयर शुरू होता है। बहुत सी चीज़ें महँगी होती हैं, और लोगों का दिल रखने को कुछ चीजों को कुछ दिनों के लिए सस्ता भी किया जाता है। दूसरा, इसी महीने में मौसम ज़बरदस्त करवट लेता है, खासतौर पर उत्तर भारत में। राजस्थान के गरम रेतीले रेगिस्तान से शुरू होकर, दिल्ली की मशहूर गर्मी, और बिहार बंगाल की उमस भरी दोपहर। लगभग हर शहर चालीस डिग्री पार होने लगता है। मतलब बाहर का तापमान हमारे शरीर के तापमान से ऊपर निकल जाता है, तो सी ज़ाहिर बात है। लोगों के दिमाग का पारा भी बढ़ता है और बेचैनी भी बढ्ने लगती है। ये भी अच्छा इत्तिफ़ाक़ है कि इसी महीने में “वर्ल्ड अर्थ डे” यानि “पृथ्वी दिवस” मनाया जाता है। एक दिन के लिए हम सब पर्यावरण के प्रति अति जागरूक हो जाते हैं। बिजली कम उपयोग करने जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाते हैं। पृथ्वी को भी लगता है शायद उसकी ज़िंदगी में कुछ और साल जुड़ जाएंगे। लेकिन अफसोस कि अप्रैल गुजरने के साथ, और मई जून के आते आते हम मौसम के और मौसम हमारा आदि हो जाता है।

अगले साल के 22 अप्रैल यानि पृथ्वी दिवस तक हम ये मान कर चलते हैं कि प्रकृति हम पर कृपा बनाए रखेगी और प्रलय नहीं आएगी। ऐसा भी नहीं है कि हम पूरी तरह लापरवाह और निश्चिंत होकर बैठ जाते हैं। बीच बीच में जब ज़्यादा बारिश, ज़रूरत से ज़्यादा तेज़ हवाएँ, सुनामी, या फिर एक्यूआई यानि एयर क्वालिटी इंडेक्स (हवा साँस लेने लायक है कि नहीं उसका माप) आपे से बाहर हो जाता है। ऐसे समय में भी हमें लगता है कि कुछ तो करना ही होगा। यानि परिवर्तन ज़रूरी है, हमारी प्रकृति में ताकि जिस प्रकृति में हम रह रहे हैं ये बची रहे और हम भी।

ये सब पढ़कर ऐसा बिलकुल न समझा जाए की अब तक पृथ्वी दिवस और ऐसी ही और जो पहल हुईं हैं, उनका कोई फायदा नहीं हुआ है। ये 1970 में पहली बार मनाया गया, तब से ग्लोबल वार्मिंग और पोल्यूशन के खतरों, जंगलो को बचाने की ज़रूरत पर बहुत से कानून बने, संस्थाओं और लोगों ने बहुत काम किया। पचपन सालों की इस मेहनत से जरूर ये दुनिया कुछ और समय तक जीने लायक बनी रही, वरना संभव है जो आज से बीस तीस साल बाद होगा वो अब तक हो चुका होता। मतलब कोरोना महामारी शायद पहले आ जाती या उसके आने से पहले कुछ और।

मेरे हिसाब से कुछ खास फर्क तब तक नहीं पड़ेगा जब तक हम सोचने का तरीका नहीं बदलेंगे। “सेव अर्थ” “सेव द प्लैनेट” की जगह स्लोगन बदलकर “अपनी जान बचाओ, या “अपने बच्चों की जान बचाओ” जैसा कुछ होना चाहिए। हमें इस गलतफहमी या खुशफहमी से बाहर आना होगा कि पृथ्वी और प्रकृति को हमारी ज़रूरत है। वो इन्सानों से पहले भी थे, और जब इंसान नहीं होंगे तब भी होंगे।

प्रकृति का स्वभाव हमेशा से खुद को नए सिरे से सँवारने का रहा है। अगर मौसमों को भी देखें तो पतझड़ आने का ये मतलब नहीं कि उसके बाद कभी हरियाली नहीं आएगी, फूल नहीं खिलेंगे। सूखी धरती होने का ये मतलब नहीं कि बरसात उस मिट्टी को फिर से सौंधी खुशबू से सुगंधित नहीं करेगी। कोरोना में हमने प्रकृति को खुद को नए सिरे से जीवंत कर सँवरते हुए देखा। साफ नीला आसमान, साँस लेने लायक ताज़ी हवा, पक्षियों और जानवरों का उन्मुक्त घूमना, नदियों में साफ पानी। मतलब सिर्फ इन्सानों के घर में बंद रहने से सब कुछ नॉर्मल हो गया था। वो बात अलग है कि खुद को इंसान कहने वाले इस जानवर ने आपदा में अवसर खोज निकाले थे, और दुर्लभ जानवरों का शिकार खूब हुआ उस समयजब इंसान ने दावा जैसी जरूरी चीजों से फायदा उठाने में कसर नहीं छोड़ी तो उसे क्या पड़ी थी बेजुबान जानवरों की ।

A peacock seen at Sadarjung lane during the lockdown in New Delhi on April 18, 2020. Image Courtesy – Hindustan Times

प्रकृति का स्वभाव और इंसान की प्रकृति ! Hindi Blogpost by Gaurav Sinha, World Earth Day 2025
A peacock seen at Sadarjung lane during the lockdown in New Delhi on April 18, 2020. Image Courtesy – Hindustan Times

वो दो साल का समय हम सबके लिए एक इशारा था, और चेतावनी भी कि जो घमंड हम लेकर बैठे हैं उसको खुद ही चूर चूर कर दें। पर जैसे प्रकृति का स्वभाव है, वैसी ही इंसान की भी अपनी फितरत है – ज़रूरी बातें भूल जाना, और गैर जरूरी बातों पर सिर खपाना। इसलिए हमने कोरोना के बाद फिर से दुगुने ज़ोर शोर से बरबादी शुरू कर दी, वो बात अलग है कि उस बरबादी को हमने विकास और तरक्की का नाम दे रखा है। जिस दिन इंसान अपने स्वभाव में बदलाव कर फिर से प्रकृति को सर्वोपरी मान लेगा उस दिन से “पृथ्वी दिवस” मनाने की ज़रूरत नहीं रहेगी।

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