इससे पहले कि हम व्हाट्सएप्प वाले रिश्ते के बारे में बात करें , 2020 और कोरोना काल की बात ज़रूरी है। ना ये कोरोना मान रहा है और न हम। जिस हिसाब से हमारी और कोरोना की दोस्ती जारी है, जल्दी ही इस दोस्ती की सालगिरह मनाई जाएगी। वैज्ञानिक और शोधकर्ता बोल बोल कर परेशान हैं की अगर हर कोई मास्क का इस्तेमाल करने लगे तो कोविड – 19 की विकास दर को 40 फीसदी कम किया जा सकता है। कुछ ने तो इस प्रतिशत को 70 % तक आँका है, अगर सब का एवरेज भी लगा लें तो आराम से जो नुक्सान हो रहा है उसको आधा तो किया ही जा सकता है | पर मजाल है की हम मान जाएँ, दोस्ती की है तो निभाएंगे भी | उम्मीद है की जल्दी ही वैक्सीन आए और इस दोस्ती का अंत हो।
इससे पहले की आपको लगे की टॉपिक तो व्हाट्सप्प है और ज्ञान एक बार फिर कोरोना पर, भाई बस भी करो आगे बढ़ो। चलिए पैराग्राफ के साथ विषय बदल कर मुद्दे की बात पर आते हैं।
व्हाट्सप्प पधारे म्हारे देश !
स्मार्ट फ़ोन के बड़े फायदे हैं पर व्हाट्सप्प से गजब कुछ नहीं , 2009 में अमेरिका में जन्में व्हाट्सप्प ने हमारी ज़िन्दगी ने दस्तक दी थी | ये जब पहली बार फ़ोन में आया तो लोगो को इसमें सर्वगुण संपन्न बहू नज़र आयी, मैसेज करो, कॉल करो, वीडियो कॉल करो, फेसबुक की तरह स्टेटस लगाओ, कांटेक्ट भेजो, लोकेशन भेजो, मतलब जो भी तुम करना चाहो , बस व्हाट्सप्प को याद करो ( कोई गाना याद आया ? मुबारक हो आपकी यादाश्त भी अच्छी है, और संगीत में टेस्ट भी अच्छा है)
इन गुणों की अलावा जो सबसे कमाल का गुण ये समझदार बहू (मतलब व्हाट्सप्प) लेकर आई, वो था परिवारों को जोड़ कर रखने का गुण। जी बिलकुल सही समझ रहे हैं आप व्हाट्सप्प ग्रुप्स ,स्कूल के दोस्तों का ग्रुप, दफ्तर के कलीग्स का ग्रुप तक ठीक था, इन सब से बढ़कर जो ग्रुप आया, वो ग्रुप था फैमिली व्हाट्सप्प ग्रुप। यहीं से एक अलग युग की शुरुवात हुई। इस युग में हम फिर से एक बड़ों का आदर करने लगे, बड़े बुज़ुर्ग भी सुबह शाम आशीर्वाद देने लगे। कभी-कभी लगता है, की ब्रायन ऐक्टन और जॉन कोउम अमरीकी नहीं सच्चे भारतीय हैं। दोनों को शत शत नमन !
व्हाट्सएप्प , रिश्ते, और मास्क !
हम जितनी भी तकनीकी तरक्की कर लें, इंसानी फितरत को जाने नहीं देते, पहले मोबाइल फ़ोन आया तो उसको झूठ बोलना सीखा दिया, व्हाट्सप्प भी कब तक बचता इसको भी फेक न्यूज़ फ़ैलाने का जरिया बना डाला। मास्क को लगाने में हमें परहेज़ है, जबकि नकाब हम सालों से लगाए हुए हैं। अपने फॅमिली व्हाट्सप्प ग्रुप को ही लीजिये, ये बात तय है की आपको एक न एक फॅमिली ग्रुप की मेमबरशिप तो मिल ही रखी होगी | उन ग्रुप्स में जो मैसेज आते हैं सुबह शाम, और जो चाशनी जैसी बातें होती हैं देखकर लगता है सतयुग फिर से आ गया वापस। मन गदगद हो जाता है।
क्या सच में सब इतना अच्छा होता है जितना व्हाट्सप्प फैमिली ग्रुप्स में नज़र आता है? सब परिवारों पे निर्भर करता है। हो भी सकता है और नहीं भी।आप कमेंट करके विचार रख सकते हैं अपना। मास्क छोटा हो या बड़ा लगा सबने रखा है , वो मास्क जो दिखाई नहीं देता ,जितना दिल खोल के हम चैटिंग करते हैं वही दिल अचानक सिकुड़ कर छोटा हो जाता है, जब पता चलता है किसी को कोई मदद की जरुरत है। मोबाइल को सिखाने में वक़्त नहीं लगा था, व्हाट्सप्प को भी हमने छल कपट सीखा दिया। चाहे मैसेज अपने हिसाब से इग्नोर करना हो या,बेमन से किसी की तारीफ, या ब्लू टिक वाले लास्ट सीन की धोका धड़ी सब हिट है।
करें तो क्या करें!
ये अच्छा सवाल है। मास्क कोई भी हो घुटन तो होती है, सबसे पहले नज़र न आना वाला मास्क निकाल फेंके। अच्छा महसूस होगा, जैसा महसूस करें वैसा कहें, सच कड़वा सही झूठ से अच्छा ही होता है। सर्वगुण संपन्न वाहट्सएप्प के सारे अच्छे गुण अपनाएं, फेक न्यूज़ या नफरत फ़ैलाने वाली बातों से बचे, अब जब एक मास्क हटा ही दिया है तो कोरोना से बचाव के लिए कपडे वाला मास्क पहनने में आसानी होगी। कोरोना हमसे दोस्ती निभाने नहीं बल्कि हमें दोस्ती, परिवार, रिश्तों और इंसानियत की अहमियत याद दिलाने आया है, सीखना जारी रखें!
आपको ये लेख कैसा लगा? व्हाट्सएप्प ग्रुप्स, रिश्तों और मास्क (दोनों तरह के) के बारे में अपनी राय कमेंट करके बताएं ! अपना समय देने के लिए बहुत धन्यवाद !
बोनस टिप –
This is so damn relatable Gaurav!! Really well put. Felt almost like you are reading my mind. I try my best to stay as real as I can without hurting anyone’s feelings. The new WhatsApp family groups have also got new expectations. Say for instance, he/she didnt comment on my photo or didnt congratulate me on my news. May be he/she isn’t happy for me and so on. In a small close family groups these expectations are absolutely right nevertheless, in big groups it becomes quite challenging to keep up with the information flowing. Specially when you live in different time zones. The bottom line is you cant keep every single person happy so let’s expect less yet try to show the level of importance to our close ones as you never know, life is short and unpredictable.
Wow, I didn’t expect it will be so much relatable. Thank you for sharing you views Shivalika. I guess this is a reality and we need to deal with it. Best of luck with such groups!
Absolutely gem….thanks for sharing
Thank you Sunil. Appreciate it !
Very well written Gaurav. It’s so true and where you have mentioned about family groups and fakeness involved is right. Blessings shower only on watsapp. I wish people read it and follow to get rid of the unreality and try to be truthful n realistic. Amazing piece of writing yet again. Impressive subject. Keep writing
Just so true.loved the idea
Thank you so much !
This is what we have been & made technology in accordance to our will…
I can corelate many facts..
Everything is so simply put together 🙂
Keep up the writing…
Each and every word of yours are so true…really appreciate your writing.
Thank you so much !
Exactly. It’s our fault we keep misusing the great things. Thank you for the read. Appreciate it !
But these Radios are also commercially active like cricket. This mogambo Mobile Phone was invented with some purpose now it’s used for everything except for that purpose. WhatsApp is like a vitamin these days, immediate attention and that too 24*7 otherwise bad emoji.-
Good blog GS.
Thank you Navneet. No doubt it’s a must tool and comes handy for lot of stuff. We have a habit of making mogambo and gabbar a comedian very soon. Radio is also commercial but still far better than the idiot box. Specially the crazy news channels.
Well written and with facts….keep writing atleast someone likes facts
Thank you Tito. Glad you liked it. Intent was to generate a discussion and see if my assessment is true. Seems like we all are seeing this.
So true
Thank you !
Very nicely put together. I really liked the concept of removing the fake mask (that’s so true). This have become a trend these days n that too everywhere.
Sach kadwa hota hai but sach hota hai.
Also whatsapp brought all of us close but only in form of comments, chatting or sharing pics, emoji, etc. Everyone has stopped meeting rather chit chat on whatsapp.
Nice topic, nice thoughts n very nicely portrayed… 🙂
Thank you for the detailed feedback. I’m glad you liked many aspects and could relate to them.
Bhaiya,
You have encapsulated ur ideologies in a way that is very elegant and yet simple. I really loved that stuff – Mask toh humne kab se laga rkha. A good point for hypocrisy in today’s society infact in all of us somewhere. In this contemporary world we have forget the idea of being righteousness and keep on inclining towards the fakeness.
Well , It’s a “Must Read Blog” !!
Thank you so much. We are society and your generation is much smarter and generous. We are in safe hands. 🙂
Good one Gaurav
Thank you Parikshit!
Wah….nicely pen downed.
Thank you for the read. Glad you liked it 🙂
Nice Article, describes the fact and Nicely put together…
Thank you so much. Glad you liked it and could relate to my thoughts.