
आजकल हर शहर में एक सेलफ़ी पॉइंट देखने को मिलता है। आई लव “शहर का नाम” ये बोर्ड जिस जगह लगाए गए हैं क्या वो उस शहर को अलग पहचान देते हैं? उस शहर की सबसे खूबसूरत जगह है, ताकि अच्छी सेलफ़ी आ सके? या उसका कुछ और क्राइटेरिया है, ये मालूम नहीं पर एक अच्छा ट्रेंड तो है। कम से कम इसी बहाने शहर से प्यार दिखाने का मौका तो मिल जाता है। वैसे शहर या देश से प्यार दिखाने और जताने के और भी तरीके हैं पर ये सबसे आसान, सुंदर और सुलभ है।
हम जिस जगह रहते हैं। उस जगह को फॉर ग्रांटेड लेते हैं। उसकी कदर नहीं करते। ये इंसानी फितरत है शहर तक सीमित नहीं, हर बात पर लागू होती है। फिर चाहे दोस्त हों, रिश्ते हों, या फिर अच्छी सेहत हो। हमारे दिमाग में बड़े मनोरंजक तरीके से भर दिया गया है – “ये दिल मांगे मोर”। मतलब आपको संतुष्ट नहीं होना है। चाहे कोल्ड ड्रिंक की बोतल हो, एक ठीक ठाक नौकरी, या फिर हमारा भला चाहने वाला परिवार और दोस्त। बात गलत भी नहीं, संतुष्ट हो गए तो ज़िंदगी नीरस हो जाएगी। पर ऐसी भी क्या ज़िद की गन्ने को इतना निचोड़ो की वो बेस्वाद हो जाए।
ख़ैर, शहर वाली बात पर वापस आयें तो बचपन से दिल्ली में रहने के बावजूद बहुत सी ऐसी जगह हैं जो टुरिस्ट स्पॉट हैं पर मेंने तसल्ली से नहीं देखी। दिल्ली के बगल में ही ताज महल जाना ही कम से कम पच्चीस साल बाद हुआ था। और ये कोई अपवाद नहीं, अक्सर सबके साथ होता ही है। तो अगर कोई मुझसे पूछे कि दिल्ली की कौन सी जगह सबसे ज़्यादा पसंद है तो वो क़ुतुब मीनार, कनाट प्लेस, या इंडिया गेट नहीं होंगे। हमारे दिमाग में रह जाते हैं गली मोहल्ले, जहाँ से आप गुजरते रहो हों। वो बस स्टैंड जहाँ घंटों बस का इंतज़ार किया हो, चलती बस में भाग कर चढ़ने की कला सीखी हो। वो सैलून जहाँ अपना नंबर आने तक टीवी पर मैच देखा हो, और लोगों की बेबाक मन की बातें सुनी हों। ऐसा इसलिए भी है कि जो फ़ेमस जगह हैं वो टुरिस्ट स्पॉट होते हैं और उस शहर में रहने वाले लोग टुरिस्ट नहीं होते। वो पूरा शहर उनके लिए घर होता है।

पिछले कुछ सालों से पटना में हैं, यहाँ भी एक से बढ़कर एक टुरिस्ट प्लेस हैं, जिनमें से कई तो हमारे सामने ही बने हैं। पास ही गंगा नदी है, बहुत से सुंदर घाट हैं। मतलब घूमने लायक बहुत सी जगहें हैं। “आई लव पटना” का बोर्ड भी इधर उधर शिफ्ट होता रहता है। मेरे लिए यहाँ एक जगह जो बहुत खास है वो है मेरे डेस्क की खिड़की। जहाँ से सूरज रोज डूबता हुआ नज़र आता है। ऐसा नहीं है की इससे ज़्यादा खूबसूरत सनसेट पॉइंट नहीं शहर में। मगर शाम को एक तरफ जहाँ सूरज आसमान को रंगों से भर रहा होता है। वहीं खिड़की से नज़र आते हैं दो बुजुर्ग दंपति जो अपनी बाल्कनी में आमने सामने बैठ या तो चाय पी रहे होते हैं। या बाहर देख रहे होते हैं। कभी कभार मोबाइल में भी कुछ स्क्रोल करते दिखते हैं। लेकिन ज़्यादातर बिना कुछ कहे बस बैठे होते हैं। यूँ घंटों तक एक साथ बैठना बिना कुछ कहे सुने, सुकून से थोड़ा अजीब सा है। इस “दिल मांगे मोर” वाले ज़माने में।
इसका काउंटर हो सकता है कि रिटायर्ड लोग हैं शांति से बैठे हैं, उम्र का तक़ाज़ा है। मगर उनके जैसे और भी न जाने कितने उम्र दराज़ लोग हैं हमारे आस पास। जो अब भी रुक कर अपने आस पास से गुज़र रही ज़िंदगी को नहीं देख पाते। बहुतों को तो स्मार्ट फोन ने जकड़ लिया है। और अंजाने में वो इस मॉडर्न भेड़ चाल का शिकार हो चुके हैं। मुझे ये लगता है कि कुछ आदतों का उम्र से कोई लेना देना नहीं होता। आपको क्या लगता है? आपके शहर में कौन सी है वो खास जगह जो आपकी पसंदीदा है?
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